नया उफ़क़ By Nazm << ज़ाकिर साहब तिफ़्ली के ख़्वाब >> क्या तुम को ये पता है ऐ ना-समझ रफ़ीक़ो रोज़-ए-अज़ल से जिस पर तुम गामज़न रहे हो वो रास्ता ख़ला की सरहद से जा मिला है मशअल जलाओ देखो बिफरी हुई हवा में आईना-ए-सदा में चेहरा किसी उफ़ुक़ का फिर से उभर रहा है Share on: