उस की गली में फिर मुझे इक बार ले चलो मजबूर कर के मुझ को मिरे यार ले चलो शायद ये मेरा वहम हो मेरा ख़याल हो मुमकिन है मेरे बाद उसे मेरा मलाल हो पछता रहा हो अब मुझे दर से उठा के वो बैठा हो मेरी राह में आँखें बिछा के वो उस ने भी तो किया था मुझे प्यार ले चलो अब उस गली में कोई न आएगा मेरे बाद उस दर पे कौन ख़ून बहाएगा मेरे बाद मैं ने तो संग-ओ-ख़िश्त से टकरा के अपना सर गुलनार कर दिए थे लहू से वो बाम-ओ-दर फिर मुंतज़िर हैं वो दर-ओ-दीवार ले चलो वो जिस ने मेरे सीने को ज़ख़्मों से भर दिया छुड़वा के अपना दर मुझे दर दर का कर दिया माना कि उस के ज़ुल्म-ओ-सितम से हूँ नीम-जाँ फिर भी मैं सख़्त जाँ हूँ पहुँच जाऊँगा वहाँ सौ बार जाऊँगा मुझे सौ बार ले चलो दीवाना कह के लोगों ने हर बात टाल दी दुनिया ने मेरे पाँव में ज़ंजीर डाल दी चाहो जो तुम तो मेरा मुक़द्दर सँवार दो यारो ये मेरे पाँव की बेड़ी उतार दो या खींचते हुए सर-ए-बाज़ार ले चलो उस की गली को जानता पहचानता हूँ मैं वो मेरी क़त्ल-गाह है ये मानता हूँ मैं उस की गली में मौत मुक़द्दर की बात है 'शाहिद' ये मौत अहल-ए-वफ़ा की हयात है मैं ख़ुद भी मौत का हूँ तलबगार ले चलो उस की गली में फिर मुझे इक बार ले चलो