नन्ही 'फ़रहत'

नन्ही मुन्नी प्यारी 'फ़रहत'
है माँ बाप के दिल की राहत

शौक़ से मकतब जाती है वो
जी पढ़ने में लगाती है वो

उस्तानी जी की है वो प्यारी
माँ की है वो राज-दुलारी

ख़ूब सबक़ फ़रफ़र है सुनाती
मकतब से इनआ'म है पाती

माँ जो सबक़ सुनती है घर पर
प्यार से करती ख़ुश हो हो कर

बाप है लाता वास्ते उस के
चीज़ी कपड़े गुड़ियाँ खिलौने

और भी शौक़ से पढ़ती है वो
पढ़ने में यूँ बढ़ती है वो

लड़कियों को वो छोड़ के पीछे
सब से निकल जाती है आगे

इतने नंबर वो है पाती
दंग है उस्तानी रह जाती

बच्चियो तुम भी शौक़ से पढ़ना
अगली जमाअत में यूँ चढ़ना

मदरसा भर में नाम भी पाओ
लो शाबाश इनआ'म भी पाओ

जी पढ़ने में ख़ूब लगाना
तुम भी 'फ़रहत' बन के दिखाना


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