मुझे बता कर कि मेरी सम्त-ए-सफ़र कहाँ है कई ख़ज़ानों के बे-निशान नक़्शे मुझे थमा कर कहा था उस ने कि सातवें दर से और आगे तुम्हारी ख़ातिर मिरा वो बाब-ए-बक़ा खुला है मगर वहाँ पर तमाम दर वा थे मेरी ख़ातिर वो सातवाँ दर खुला नहीं था मगर वहाँ पर कोई भी राज़-ए-बक़ा नहीं था तमाम अज्साम थे सलामत कोई भी ज़िंदा बचा नहीं था कोई भी मेरे सिवा नहीं था वहाँ भी कोई ख़ुदा नहीं था