नुक़्ता By Nazm << शीशा-ए-साअत का ग़ुबार ज़ॉम्बी >> हर तरफ़ से इन्फ़िरादी जब्र की यलग़ार है किन महाज़ों पर लड़े तन्हा दिफ़ाई आदमी मैं सिमटता जा रहा हूँ एक नुक़्ते की तरह मेरे अंदर मर रहा है इज्तिमाई आदमी Share on: