क़ाफ़ियों से कोई छुटकारा दिलाए बन गई तकलीफ़-ए-जाँ मुझ को रदीफ़ बहर है हर वक़्त दिल में मौजज़न (क़ाफ़िए की आज़माइश से गुज़र क़ाफ़िया-पैमा न बन क़ाफ़िए ने आ दबोचा क़ाफ़िया-पैमा न हो) खुरदुरे-पन को तरसती है ज़बाँ क्यूँ मंझी हैं इस क़दर नज़्में मिरी क्यूँ सजी है इस क़दर मेरी ग़ज़ल (क़ाफ़िए को रोक फिर आने लगा) ज़ेहन है मजनून-ए-आदाब-ए-सुख़न दिल पुराने रस का रसिया है अभी निकहत-ए-माज़ी का बसिया है अभी (क़ाफ़िया फिर आ गया मजबूर हूँ क़ाफ़िए को रोक फिर आने लगा) सोचता हूँ बहर की मौजों में जकड़ा हूँ अभी क़ाफ़िया तो ख़ैर काफ़ी रुक गया बहर तो टूटी नहीं बहर इक बहर-ए-बसीत बहर इक देव-ए-तनोमंद-ओ-मुहीत इस क़दर जिद्दत से क्यूँ है कद मुझे ज़ेहन ओ दिल हैं क्यूँ रिवायत के असीर