तुम्हें ख़बर है मिरे सिरहाने के बेल-बूटों में इक शगूफ़ा नया खिला है तुम्हें ख़बर है कि ख़ुश्क-साली के ज़र्द मौसम में फूल खिलना दलील है कि मैं अपने ख़्वाबों को रेहन रख कर तमाम शब इक अज़िय्यत से काटती हूँ रविश रविश को सँवारती हूँ मुझे ये डर है तुम्हारी यादों से मेरा रिश्ता न टूट जाए कहीं ये गुलशन न सूख जाए