जब दर्द की लहरें डूब गईं जब आँखें चेहरा भूल गईं तुम सोच के आँगन में कैसे फिर याद के घुँगरू ले आए मैं कैसी महक से पागल हूँ फिर रक़्स-ए-जुनूँ में शामिल हूँ फिर चेहरा चेहरा तेरा चेहरा फिर आँख में तेरी आँखों का पुर-कैफ़ नज़ारा झूम उठा फिर सारा ज़माना झूम उठा कब रात गई कब दिन जागा कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं