ऐ हिन्द के बाशिंदो आओ उजड़ा गुलज़ार सजा डालें अब दौर-ए-ग़ुलामी ख़त्म हुआ इक ताज़ा जहाँ की बिना डालें अब हिन्द की असली ईद हुई जो आज़ादी की दीद हुई पढ़ पढ़ के नमाज़-ए-आज़ादी अब रूठे हुओं को मना डालें कश्ती भी नई दरिया भी नया साहिल भी नया मल्लाह भी नए अब कर के भरोसा हिम्मत पर तूफ़ान में राह बना डालें हैं रंज-ओ-ख़ुसूमत इक रोड़ा राह-ए-आज़ादी में अब भी हम रंज पुराने दूर करें बिछड़ों को गले से लगा डालें जो मुल्क था सोने की चिड़िया बंधन ने उसे पामाल किया ग़ुर्बत को यहाँ से दूर करें फिर दूध की नहरें बना डालें फिर बोस से योद्धा पैदा हों जो हिन्द की क़िस्मत जाग उठे इक बार ज़माने पर सिक्का फिर मादर-ए-हिन्द बिठा डालें इस बूढ़े हिमाला पर्बत से फिर नूर का चश्मा-ए-अहल उठे इस मेल-ओ-मुहब्बत के जल से हर बाशी को नहला डालें ये हिन्द की आज़ादी गोया कुल मशरिक़ की आज़ादी है फिर मशरिक़ मशरिक़ बन जाए जो ज़ुल्म के दौर मिटा डालें 'अनवर' की दुआ है ऐ मौला फिर हिन्द की क़िस्मत जाग उठे बिछड़े आपस में मिल जाएँ हम रूठे हुए को मना डालें