रात भर नर्म हवाओं के झोंके वक़्त की मौज रवाँ पर बहते तेरी यादों के सफ़ीने लाए कि जज़ीरों से निकल कर आए गुज़रा वक़्त का दामन थामे तिरी यादें तिरे ग़म के साए एक इक हर्फ़-ए-वफ़ा की ख़ुश्बू मौजा-ए-गुल में सिमट कर आए एक इक अहद-ए-वफ़ा का मंज़र ख़्वाब की तरह गुज़रते बादल तेरी क़ुर्बत के महकते हुए पल मेरे दामन से लिपटने आए नींद के बार से बोझल आँखें गर्द-ए-अय्याम से धुँदलाए हुए एक इक नक़्श को हैरत से तकें लेकिन अब उन से मुझे क्या लेना मेरे किस काम के ये नज़राने एक छोड़ी हुई दुनिया के सफ़ीर मेरे ग़म-ख़ाने में फिर क्यूँ आए दर्द का रिश्ता रिफ़ाक़त की लगन रूह की प्यास मोहब्बत के चलन मैं ने मुँह मोड़ लिया है सब से मैं ने दुनिया के तक़ाज़े समझे अब मेरे पास कोई क्यूँ आए रात भर नौहा-कुनाँ याद की बिफरी मौजें मेरे ख़ामोश दर ओ बाम से टकराती हैं मेरे सीने के हर इक ज़ख़्म को सहलाती है मुझे एहसास की उस मौत पर सह दे कर सुब्ह के साथ निगूँ सार पलट जाती है