फ़र्द फ़र्द मस्त है पंद्रह अगस्त है जोश है उबाल है रंग है गुलाल है गली गली हैं रौनक़ें अजीब सी हैं रौनक़ें हम कभी ग़ुलाम थे भारती ग़ुलाम थे ज़िंदगी की शाम थी साँस तक ग़ुलाम थी फ़िरंगियों के जौर से भारती निढाल थे ज़ुल्म जब बहुत हुआ अपनी हद से बढ़ गया भारती बिफर गए हम सभी बिफर गए जान-ओ-माल तज दिया घर अयाल तज दिया एक हो गए जो हम दूर हो गया अलम हुर्रियत मिली हमें आफ़ियत मिली हमें फ़र्द फ़र्द मस्त है पंद्रह अगस्त है