परस्तिश By Nazm << गौतम के लिए नज़्म हिमाला >> कैसी मोहब्बत है लिखा क़िस्मत में जिस के तमाम उम्र का हिज्र कम कैसे हो लगन जब दिल ही ख़ुद परस्तार हो जाए और ये दिल की लगी परस्तिश हो जाए Share on: