जो ज़ाहिर न हो वो लताफ़त नहीं है जो पिन्हाँ रहे वो सदाक़त नहीं है ये फ़ितरत नहीं है मशिय्यत नहीं है कोई और शय है ये इस्मत नहीं है सबा और गुलिस्ताँ से दामन कशीदा नवा-ए-फ़ुसूँ-ख़ेज़ और ना-शुनीदा तजल्ली-ए-रुख़्सार और ना-दमीदा कोई और शय है ये इस्मत नहीं है सर-ए-रहगुज़र छुप-छुपा कर गुज़रना ख़ुद अपने ही जज़्बात का ख़ून करना हिजाबों में जीना हिजाबों में मरना कोई और शय है ये इस्मत नहीं है ख़यालात-ए-पैहम में हर वक़्त गुम-सुम दिल-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक पे अब्र-ए-तवहहुम बुझा सा तबस्सुम घुटा सा तकल्लुम कोई और शय है ये इस्मत नहीं है वो इक काहिश-ए-तल्ख़ हर आन दिल में वो शाम-ओ-सहर एक ख़लजान दिल में उमँडता हुआ एक तूफ़ान दिल में कोई और शय है ये इस्मत नहीं है निगाहों की दावत को पामाल करना मज़ाक़-ए-लताफ़त को पामाल करना तक़ाज़ा-ए-फ़ितरत को पामाल करना कोई और शय है ये इस्मत नहीं है क़सम अंजुम-ए-शब के ज़ौक़-ए-सफ़र की क़सम ताज़गी-ए-नसीम-ए-सहर की क़सम आसमानों के शम्स-ओ-क़मर की कोई और शय है ये इस्मत नहीं है क़सम शोख़ी-ए-इश्क़ संजोगता की क़सम जून के अज़्म-ए-सब्र-आज़मा की क़सम ताहिरा की क़सम ख़ालिदा की कोई और शय है ये इस्मत नहीं है