बाग़ों में जब अश्जार पे गाते हैं परिंदे मौसम का कोई जश्न मनाते हैं परिंदे कोहसार पे जब चलती हैं यख़-बस्ता हवाएँ मिल कर सू-ए-मैदाँ उतर आते हैं परिंदे उड़ जाते हैं फिर वादी-ए-कोहसार की जानिब मैदाँ में कड़ी धूप जो पाते हैं परिंदे चुनते हैं मकाँ फूँस के बे-ख़ानुमाँ कुछ लोग या घोंसले तिनकों के बनाते हैं परिंदे पहुँचाते हैं नुक़सान जो खेतों को जनावर कीड़ों से भी फ़स्लों को बचाते हैं परिंदे बच्चों के मदारिस में तरानों का है आलम या वक़्त-ए-सहर शोर मचाते हैं परिंदे सफ़ बाँध के उड़ते हैं तो इंसान को ऐ 'ज़ेब' तंज़ीम के आदाब सिखाते हैं परिंदे