एक पल हद-ए-निगाह चिकनी काली सड़क दाएँ आसमाँ से बातें करतीं इमारतें बाएँ ज़मीन की क़दम-बोसी करती झोंपड़ियाँ ऊपर नीलगूँ बे-कराँ आसमाँ और इस पर गिद्धों की बारात मुतजस्सिस निगाहें चारों जानिब देखतीं मायूसी दामन पकडती फिर उदास चश्म-ए-हैराँ उम्मीद की किरन थामे चारों जानिब भटकीं मगर एक भी कबूतर नहीं दिखा हज़ारों सवालात हवा में लहराने लगे क्या कबूतर परवाज़ भूल गए या एक भी कबूतर नहीं रहा या गिद्धों ने उन्हें नोच खाया