बहार-ए-हुस्न जवाँ-मर्ग सूरत-ए-गुल-ए-तर मिसाल-ए-ख़ार मगर उम्र-ए-दर्द-ए-इश्क़ दराज़ वो विद्यापति की शाइ'री की मासूम-ओ-हसीन-ओ-शोख़ राधा वो अपने ख़याल का कनहैया इन शहरों में ढूँडने गई थी दस्तूर था जिन का संग-बारी वो 'फ़ैज़'-ओ-'फ़िराक़' ज़ियादा तक़्दीस-ए-बदन की नग़्मा-ख़्वाँ थी तहज़ीब-ए-बदन की राज़-दाँ थी गुलनार बदन की तहनियत में गुलनार लबों से गुल-फ़िशाँ थी लब-आश्ना लब ग़ज़ल के मिसरे जिस्म-आश्ना जिस्म नज़्म-पैकर लफ़्ज़ों की हथेलियाँ हिनाई तश्बीहों की उँगलियाँ गुलाबी सरसब्ज़ ख़याल का गुलिस्ताँ मुबहम से कुछ आँसुओं के चश्मे आहों की वो हल्की सी हवाएँ सद-बर्ग हवा में मुंतशिर थे तितली थी कि रक़्स कर रही थी और दर्द के बादलों से छन कर नग़्मों की फुवारे पड़ रही थी पुर-शोर मुनाफ़िक़त के बाज़ार अफ़्वाहें फ़रोख़्त कर रहे थे वो अपनी शिकस्ता शख़्सियत को अशआ'र की चादरों के अंदर इस तरह समेटने लगी थी एहसास में आ रही थी वुसअ'त नज़रों का उफ़ुक़ बदल रहा था और दर्द-ए-जहान-ए-आदमियत टूटे हुए दिल में ढल रहा था इस आलम-ए-कैफ़-ओ-कम में इक दिन इक हादसे का शिकार हो कर जब ख़ूँ का कफ़न पहन लिया तो उड़तीं सलीबें नौहा-ख़्वाँ थीं ख़ामोश था कर्ब-ए-ख़ुद-कलामी अब कुछ नहीं रह गया है बाक़ी बाक़ी है सुख़न की दिल-नवाज़ी 2 जन्नत में है जश्न-ए-नौ का सामाँ महफ़िल में 'मजाज़'-ओ-'बाइरन' हैं मौजूद हैं 'कीट्स' और 'शैली' ये मर्ग-ए-जवाँ के सारे आशिक़ ख़ुश हैं कि ज़मीन-ए-पाक से इक नौ-मर्ग-ए-बहार आ गई है लिपटी हुई ख़ाक की है ख़ुश्बू और साया-फ़गन सहाब-ए-रहमत