नीम-शब में ऐश-ए-बिस्तर छोड़ कर कौन मेरे पीछे पीछे आएगा और देखेगा कि मैं एक ग़ैर-आबाद मस्जिद में चंद अनजाने बुज़ुर्गों की जमाअत में तहज्जुद पढ़ रहा हूँ कौन देखेगा रिजाल-उल-ग़ैब मुझ से बात करने में मगन हैं चाँद को बाहर फ़लक पर छोड़ कर वक़्त की अंधी गुफा में दूर तक अंदर पहुँच आग के और रौशनी के आबशारों में नहाता हूँ और इसी रिश्ते से बाहर आन कर चाँद की गर्दन में अपना हाथ डाले अंजुमन-ता-अंजुमन आवारगी का लुत्फ़ लेता हूँ नीम-शब को ऐश-ए-बिस्तर छोड़ कर