ख़ुदावंद मुझे तौफ़ीक़ दे मैं ऐसे ज़िंदा लफ़्ज़ लिक्खूँ जो न लिक्खूँ मैं तो दुनिया बाँझ हो जाए मगर फिर सोचता हूँ इतने ज़िंदा लफ़्ज़ लिक्खे जा चुके हैं और लिखे जा रहे हैं मैं भी लिख लूँगा तो क्या हो जाएगा क्या ये पुराना आदमी फिर से नया हो जाएगा या दूसरा हो जाएगा