राहत तिरे ही दर्स से पाता है कुल-जहाँ सर तेरी अज़्मतों पे झुकाता है आसमाँ गूँजा यहीं से अम्न-ओ-अमाँ का पयाम है इस वास्ते जहाँ में तिरा एहतिराम है जो तेरी महफ़िलों से उठी वो सदा है ये दुनिया बने बहिश्त तिरा मुद्दआ' है ये फ़ित्ने का शर का बुग़्ज़-ओ-हसद का ग़नीम है तू भी अज़ीम क़ौम भी तेरी अज़ीम है आलम ब-सद-ख़ुलूस झुकाए न क्यों जबीं तहज़ीब-ओ-इल्म-ओ-फ़न का है गहवारा-ए-हसीं शो'लों को सर्द करने के सामाँ किए हुए सब अहल-ए-दिल हैं एक ही जज़्बा लिए हुए पैग़ाम है कि आतिश-ए-नफ़रत में मत जलो ज़ुल्मत में शम्अ'-ए-उन्स फ़रोज़ाँ किए चलो हर-दम बका-ए-दहर पे चश्म-ए-बशर रहे माज़ी-ओ-हाल-ओ-फ़र्दा पे गहरी नज़र रहे दिल दिल से मुल्तफ़ित हो मोहब्बत दो-चंद हो इंसान का वक़ार जहाँ में बुलंद हो दर दर की ख़ाक कोई कहीं छानता न हो ग़ुर्बत है चीज़ क्या ये कोई जानता न हो चेहरे पे रंग आए ये ग़ुंचा खिला रहे गुलशन हयात-ए-इंसाँ का फूला फुला रहे आगाह मा-ओ-तू से किसी की ज़बाँ न हो तफ़रीक़-ए-रंग-ओ-नस्ल का नाम-ओ-निशाँ न हो दुनिया से दूर जंग-ओ-जदल का धुआँ रहे घर में गली में गाँव में अम्न-ओ-अमाँ रहे रौशन 'जमाल' दहर में भारत का नाम है हर लब पे आज मेरे वतन का पयाम है