फ़ज़ाओं में कोई नादीदा मा'लूम रस्ता है जहाँ जज़्बात मुज़्तर रूह के सीमाब-पा क़ासिद सऊबात-ए-सफ़र से बे-ख़बर इक दूर मंज़िल को परों में उल्फ़तों के राज़ को ले कर हवाओं की तरह आज़ाद बे-परवा उड़े जाएँ पयाम-ए-शौक़ दे आएँ अगर इस रात उस बे-राह रस्ते पर कोई जज़्बा दिल-ए-बेताब से उठ कर इनाँ-बर्दाश्ता निकले इशारे गर्म जोश-ए-आरज़ू आएँगे एसिर पर उन्हें पढ़ना अगर मंज़ूर-ए-ख़ातिर हो जवाबन एक जज़्बे को सवार-ए-बर्क़ कर देना