दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं निगाह-ए-शौक़ को अब ताब-ए-इंतिज़ार नहीं नहीं नहीं मुझे बर्दाश्त अब नहीं की नहीं ख़ुदा के वास्ते कहना न अब की बार ''नहीं'' हमेशा वादे किए अब के मिल ही जा आ कर हयात ओ वादा ओ दुनिया का ए'तिबार नहीं दिखाई अपनी मोहब्बत को चीर कर सीना मगर नुमूद मिरा शेवा-ओ-शिआर नहीं मिरी बहन मिरी महबूबा हुब अजब शय है जहान-ए-ख़ाक नहीं कुछ जो दोस्त-दार नहीं