एक थे पेटू साहब जिन की छे फ़ुट थी ऊँचाई बैठे बैठे पहलू बदलें दस रोटी खा जाएँ इक दिन पेटू साहब को इस घर से दावत आई दिन छुपने से पहले पेटू उस घर पर जा धमके दस्तर-ख़्वान लगा तो बैठे कुछ तन के कुछ जम के पहले रोटी सालन सारे घर-भर का खा डाला फिर घर की बाक़ी चीज़ों का निकला ख़ूब दीवाला बारह लड्डू बीस इमिर्ति सोला बालू-शाही चौदह केले दर्जन चीकू हलवा एक कड़ाही घबरा कर घर के मालिक ने नौकर को दौड़ाया एक किलो बाज़ार से हलवा गाजर का मंगवाया हलवा खा कर बोले पेटू दे मोंछों पर ताव यार ज़रा अंदर से थोड़ा सा नमकीन मंगाओ थोड़ी दाल बची थी पी ली फिर लोटा भर पानी घर की हालत जान चुके थे सो उठने की ठानी साहब-ए-ख़ाना बोले बैठो बैठो कुछ फ़रमाओ घर में जूते और बचे हैं वो भी खाते जाओ