जब तुम वो पढ़ना चाहते हो जो मुझे लिखना नहीं आता और ना-उमीद हो कर अपने चेहरे के नुक़ूश बदल देते हो हमारी आँखों के बीच सात ज़मीनें और सात आसमान आ जाते हैं और मेरी आँखें तारीख़ के खोए हुए औराक़ ढूँडने लग जाती हैं तुम पूछते हो ऐसे क्यूँ देखती हो मैं वापस आ जाती हूँ और तुम्हें सच-मुच देखने लगती हूँ ऐसे ही जैसे तुम चाहते हो