मिरे पिन-कुशन में बहुत सी पिनें हैं और अक्सर पुणें इस में ऐसी हैं जो दूर अनजाने मुल्कों से आए ख़तों से निकाली गई हैं ये उस वक़्त ज़ाहिर हक़ीक़त की सूरत मिरे पिन-कुशन में लगी हैं अगर पिन-कुशन की हर इक पिन ये सोचे कि मैं तो फुलाँ देश की हूँ फुलाँ देश ने मेरा लोहा जना था फुलाँ देश ने मेरी सूरत गढ़ी थी तो ये सोचना पिन-कुशन की हक़ीक़त को ख़तरे में डाले न डाले पिनों को यक़ीनन जड़ों से हिला देगा और फिर ये सारी पिनें बे-सकत बे-जहत बे-हदफ़ यूँही रुलती फिरेंगी