मोहब्बतों के खेल में मोहब्बतों के देवता नै मुझ से खेल खेल कर हरा दिया सँवार कर मुझे नहीं ख़बर यही कि मेरे दिल की आह जो मिरे ही दिल को आ लगी तो क्यों लगी कहाँ लगी मुझे मिरे वजूद से जो इक ज़रा भी प्यार हो तो फिर उसी वजूद में उसे करूँ तलाश क्यों ये अश्क हैं मिरे अगर तो मुझ से फिर दग़ा किए इसी सनम-कदे से यूँ हैं इस तरह फ़रार क्यों मैं जानती हूँ जो नहीं मैं किस तरह करूँ बयान मैं किस तरह से दूँ सदा कि दिल मिरा है बिक चुका ये दिल मिरा है बिक चुका सनम के इस बज़ार में जहाँ से अब वो गुम-शुदा है प्यार के मज़ार में