प्यास By Nazm << सज्दा मसर्रत >> सराबों में छुपा रक्खी है मैं ने तिश्नगी अपनी मुसलसल दर्द पी कर भी नहीं बुझती है प्यास अपनी चलो अश्कों के पनघट पर बुझाएँ प्यास अपनी भी तुम्हारी भी Share on: