क़त्ल-गाहें By Nazm << रजज़ फिर न आवाज़ दो >> ये मेरा क़िबला वो तेरा क़िबला ये मेरी सरहद वो तेरी सरहद ये मेरा मज़हब वो तेरा मज़हब ये नस्ल मेरी वो नस्ल तेरी हैं क़त्ल-गाहों के नाम सारे मिरी ज़मीं का हर एक इंसाँ ज़मीं के क़र्ज़े भुला के सारे फ़लक का क़र्ज़ा चुका रहा है Share on: