मैं तलाश कर रही थी ग़म-ए-दिल का कुछ बहाना मिरी राह में ये नाहक़ कहाँ आ गया ज़माना मिरे हाल पर करम कर कभी दोस्त ग़ाएबाना वो सुकून बख़्श दिल को कि तड़प उठे ज़माना है तवाफ़ अब भी जारी तिरे आस्ताँ का लेकिन नहीं मिल सका जबीं को तिरा संग-ए-आस्ताना तिरी बारगाह तक हो मिरी किस तरह रसाई मुझे दी गई गदाई तुझे तख़्त-ए-ख़ुसरवाना मैं तड़प तड़प के ग़म में रही बे-क़रार-ओ-मुज़्तर मिरे दिल की धड़कनों को नहीं सुन सका ज़माना मिरा शौक़-ए-सज्दा-रेज़ी है हनूज़ ना-मुकम्मल मुझे कोई ये बता दे है कहाँ वो आस्ताना मिरे ग़म की ज़िंदगी पर मिरे हाल-ए-बेकसी पर कभी रहम उन को आए कभी रो पड़े ज़माना कई बार आ के बिजली गिरी सेहन-ए-गुलसिताँ पर ये रही हमारी क़िस्मत कि जला न आशियाना मुझे होश ही नहीं कुछ कि मैं शाद हूँ कि 'नाशाद' है सुरूर-ए-मय से बढ़ कर मिरा ज़ौक़-ए-शाइ'राना