शहर की गलियों के रौशन ज़ाविए रात की तन्हाइयों के हम-सफ़र आसमाँ के नीले नीले हाशिए चाँद की रानाइयों के नौहागर तीरगी लिपटी हुई दीवार से सुब्ह की ताबानियों की मुंतज़िर रास्तों के पेच ओ ख़म बाज़ार से लौट कर आए हों जैसे बार बार एक वीरानी है मेरी ग़म-गुसार कुछ सियह कुछ सुर्ख़ कुछ ख़ाकिस्तरी रंग के कुत्तों पे उजली धारियाँ जिन की शिरयानों में शोरीदा-सरी और दरयूज़ा-गरी का इम्तिज़ाज ये समाँ और रात की जादूगरी चाँद का ले कर चली हाथों में ताज