मुझे ये यक़ीं था कि जब मैं सुनाऊँगा इस शहर को शब के पहलू में किस तरह पाया है मैं ने तो सब लोग मेरे क़रीब आ के हैरत से मुझ को तकेंगे भरी पियालियाँ चाय की हाथ से छूट कर गिर पड़ेंगी निगाहों में गहरी उदासी के बादल उमडने लगेंगे नए मुआशरे की बद-आमालियों और बद-चलनियों पर बड़े सख़्त लहजे में तन्क़ीद होगी मगर कोई प्याली न हाथों से छूटी न गहरी उदासी निगाहों में उमडी नए मुआशरे की बद-आमालियों और बद-चलनियों पर किसी ने न संग-ए-मलामत ही फेंका सुना सिर्फ़ इतना अभी तुम को इस शहर के जानने में कई दिन लगेंगे