हैं याद-ए-हा-ए-रफ़्ता के दीवार-ओ-दर कहाँ वो संग-ए-आस्ताँ कहाँ वो रहगुज़र कहाँ दश्त-ए-वफ़ा में दावत-ए-दीवानगी किसे मजबूर ग़म को रुख़स्त-ए-आह-ए-सहर कहाँ उन रास्तों में ढूँडते फिरते हैं नक़्श-ए-पा ऐ हमरहान-ए-ताज़ा वो अहल-ए-सफ़र कहाँ है कौन जिस को नज़्र करें आँसुओं के फूल ले जाएँ आज आबरू-ए-चश्म-ए-तर कहाँ हर अजनबी से पूछ रहे हैं निशान-ए-राह नौ-वारिदान-ए-शहर को घर की ख़बर कहाँ दर दर की ख़ाक छानते ये दिन तो कट गया अब फ़िक्र-ए-शब है देखिए होगी बसर कहाँ