रस्सी का पुल देखा भाला हचकोले मानूस गिर्हें जिस की उक़्दों से पुर तूल सफ़र इक उम्र रस्सी का पुल इक दिन टूटा और मुसाफ़िर गिरते गिरते उस के दोनों टुकड़े थामे ख़ुद पुल बन कर बीच में लटका झूल रहा था सैकड़ों आँखों के झुरमुट में वो मस्लूब तमाशा बन कर टूटे पुल को जोड़ रहा था ऊँचाई पर दोनों सिरों की जानिब बे-रहमी से खिंचती ज़िद्दी रस्सी तुंद हवा की पैहम आड़ी तिरछी कीलें गहराई में बहता पानी और चट्टानें और हवा में दो बाज़ू शल इस मुट्ठी से उस मुट्ठी तक हश्र बपा था पानी और हवा के शोर में शिरयानों का ख़ून हो जैसे और तनाव चीख़ रहा हो अपनी आँखें खोल के देखो रस्सी बन गए हाथ तुम्हारे तुम ख़ुद अपना कफ़्फ़ारा हो हीले लो याह, हीले लो याह अब जी उट्ठो जश्न मनाओ लम्बे सफ़र से तुम को आज नजात मिली है