रास्ता वो जो उजालों की तरफ़ जाता है ख़ूबसूरत से ख़यालों की तरफ़ जाता है उस तरफ़ जा न सकी थी वो भटक जाने से घिर के सौ तरह की ख़्वाहिश में बहक जाने से कैसे दलदल में थी वो कैसे घने बन में थी कैसी मुश्किल में थी किस तरह की उलझन में थी राह पुर-ख़ार थी बचना था कठिन दामन का चोट आई वो बुरा हाल हुआ तन मन का वो परेशान थी घेरे थे उसे ढेरों ग़म था यक़ीं उस को ग़लत राह पे हैं उस के क़दम ढूँडने पर उसे वो राह नज़र आ ही गई एक दिन मंज़िल-ए-मक़्सूद को वो पा ही गई राह मिल जाने से हैरान-ओ-हिरासाँ दिल को इक तसल्ली मिली मुद्दत से परेशाँ दिल को रात कुछ यूँ शब-ए-महताब हुई है उस की रूह इक उम्र में सैराब हुई है उस की मुश्किल उन के लिए आसान हुआ करती है रास्तों की जिन्हें पहचान हुआ करती है