मोहब्बत रौशनी गीतों की ख़ुशबू तुम्हारी जुस्तुजू में पुर-फ़िशाँ है ये लम्हा अजनबी मंज़िल का राही मिसाल-ए-मौजा-ए-दरिया रवाँ है लब-ओ-गेसू की भी इक इंतिहा है लब-ओ-गेसू की भी इक इंतिहा है ग़म-ए-दिल की मगर मंज़िल कहाँ है न तन्हाई ये सन्नाटा ये आँसू तमन्नाओं की शम्ओं' की क़तारें दिलों के ज़ख़्म यादों के जनाज़े दहकते फूल कजलाई बहारें ख़ला में डोलते हैं दुख के साए कोई अपना नहीं किस को पुकारें दिल-ए-वीराँ का इक परतव है जिस ने जहाँ में शाम-ए-ग़म का नाम पाया कभी जो दर्द की शिद्दत से चीख़े तो दुनिया ने उसे इक गीत समझा उन्हीं चीख़ों में ढाला मैं ने तुझ को उन्हीं चीख़ों में तुझ को मैं ने पाया थिरकती रौशनी की चंद लहरें बहकती चाँदनी में एक साया