रिहाई By Nazm << एक लड़की ब-शर्त-ए-उस्तुवारी >> एक लम्हा मुहीत-ए-आलम है दस्तरस में कई ज़माने हैं सोच का इक घना सा जंगल है और इस में फ़क़त ख़ज़ाने हैं इन ख़यालों में क़ैद हूँ कब से ये रिहाई के कुछ बहाने हैं Share on: