जान मैं तेरे शबिस्ताँ में चला आऊँगा तुझ में गुफ़्तार की ताक़त भी न रह जाएगी तुझ में इंकार की जुरअत भी न रह जाएगी तेरी ज़ुल्फ़ों की सियह रात में सो जाऊँगा तेरे आरिज़ की महकती हुई ख़ुश-रंग शराब पी के मैं अज़्म के सूरज को भी चमकाऊँगा मैं ज़माने की हिकायात बदल जाऊँगा