हवा-ए-बयाबाँ की सरगोशियाँ धीमी धीमी कि देखो सहर है क़रीब हज़ारों अलम-हा-ए-जाँ-काह का ख़ूँ-बहा उस के आहंग में रंग में उस की शबनम से बेदार हर फूलबन का नसीब सहर है क़रीब मगर मैं ने देखा सहर को बहुत दूर अपनी अबद-गीर लज़्ज़त में गुम गुल-ओ-बर्ग-ओ-अश्जार से मावरा ज़मानों की रफ़्तार तारों के अनवार से मावरा बहुत दूर पूरब से लेकिन हवा-ए-बयाबाँ की सरगोशियों से क़रीब हज़ारों अलम-हा-ए-जाँ काह का ख़ूँ बहा उस के आहंग में रंग में उस के लहजे की दिलदारियाँ हैं अजीब सहर है क़रीब