ख़्वाब इक ख़्वाब में जो देखा है है तख़य्युल कहानियों जैसा क़िस्सा-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ की तमसील काकुल-ए-शब जवानियों जैसा गुज़रे वक़्तों की इक कविता हो ख़ाली महलों में ढूँढती हो किसे ले के हाथों में प्यार की ज़ंजीर ख़ाली नज़रों से पूछती हो किसे नींद में सोचती हुई आँखें जागते में रहीं जो सोई सी जाने किस सम्त चल पड़े हैं क़दम भूली-बिसरी अदा वो खोई सी जाने क्यूँ सुख न मिल सका तुझ को ख़ाली झोली रही वफ़ाओं की दिल-ए-बर्बाद झेलता ही रहा रुत न बदली कभी जफ़ाओं की लोग कहते हैं हुस्न की तस्वीर ऐसी तस्वीर जो अधूरी थी फ़ासला रह गया जो था दिल में हाथ-भर की फ़क़त ये दूरी थी वक़्त के आसमान पर जानम तारे अंगार से चमकते हैं याद रखता है उन को एक जहाँ दामन-ए-इश्क़ पर जो जलते हैं