वही बकरा मिरा मरियल सा बकरा जिसे बब्लू के बकरे ने बहुत मारा था वो बकरा वो कल फिर ख़्वाब में आया था मेरे दहाड़ें मार कर रोता हुआ और नींद से उठ कर हमेशा की तरह रोने लगा मैं ख़ता मेरी थी मैं ने ही लड़ाया था उसे बब्लू के बकरे से उसे मालूम था पिटना है उस को मगर फिर भी वो उस मोटे से जा कर भिड़ गया था मिरी इज़्ज़त की ख़ातिर वो भी क़ुर्बानी से बस कुछ देर पहले मगर पापा तो कहते हैं वो जन्नत में बहुत आराम से होगा वहाँ अँगूर खा कर ख़ूब मोटा हो गया होगा तो क्यूँ रोता है वो ख़्वाबों में आ कर वो क्यूँ रोता है आ कर ख़्वाब में ये तो नहीं मालूम मुझ को मुझे तो ये पता है वो जब जब ख़्वाब में रोता हुआ आया है मेरे तो अगले रोज़ बब्लू को बहुत मारा है मैं ने