वो अलम गिर गए जिन के साए तले इश्क़ की अव्वलीं सत्र लिखी गई फूल भेजे गए दुश्मनों के लिए अब मिलो भी कि ऐ रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ रंग जलने लगे रूप ढलने लगे दूसरे पहर में तेरहवीं ज़र्ब पर कट गए दिन के राजे कड़ी धूप में शाख़-ता-शाख़ मुरझा गईं रात की रानियाँ अब मिलो भी कि ऐ रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ आँसुओं में सजा अक्स उड़ने को है बर्फ़ होने को हैं अपनी हैरानियाँ रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ!! रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ!!