सरपट भागते आदमियों के साए कट कर रेल के डिब्बों की क़ब्रों में गिरते जाएँ हाँपते पहिए सम्तों के गूँगे सागर में शोर मचाएँ आँखों में आँसू लहराएँ होंटों पर बोसे कुम्हलाएँ रूह उलझती जाए सोच रहा हूँ अपने ध्यान का पर्दा खींच के सब चेहरों के चाँद बुझा दूँ सब सम्तों और सब रस्तों को चकमा दूँ और कहीं न जाऊँ