किसी साए का नक़्श गहरा नहीं है हर इक साया इक आँख है जिस में इशरत-कदों ना-रसा ख़्वाहिशों अन-कही दिल-नशीं दास्तानों का मेला लगा है मगर आँख का सेहर पलकों की चिलमन की हल्की सी जुम्बिश है और कुछ नहीं है किसी आँख का सेहर दाइम नहीं है हर इक साया चलती हवा का पुर-असरार झोंका है जो दूर की बात से दिल को बेचैन कर के चला जाएगा हर कोई जानता है हवाओं की बातें कभी देर तक रहने वाली नहीं हैं किसी आँख का सेहर दाइम नहीं है किसी साए का नक़्श गहरा नहीं है