सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू और सबा वीराँ सबा वीराँ, सबा आसेब का मस्कन सबा आलाम का अम्बार-ए-बे-पायाँ! गयाह ओ सब्ज़ा ओ गुल से जहाँ ख़ाली हवाएँ तिश्ना-ए-बाराँ, तुयूर इस दश्त के मिनक़ार-ए-ज़ेर-ए-पर तू सुर्मा वर गुलू इंसाँ सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू और सबा वीराँ! सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू तुर्श-रू ग़म-गीं, परेशाँ-मू जहाँ-गिरी, जहाँ-बानी फ़क़त तर्रार-ए-आहू मोहब्बत शोला-ए-पराँ हवस बू-ए-गुल बे-बू ज़-राज़-ए-दहर कम-तर-गो! सबा वीराँ के अब तक इस ज़मीं पर हैं किसी अय्यार के ग़ारत-गरों के नक़्श-ए-पा बाक़ी सबा बाक़ी, न महरू-ए-सबा बाक़ी! सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू अब कहाँ से क़ासिद-ए-फ़र्ख़ंदा-पय आए? कहाँ से, किस सुबू से कास-ए-पीरी में मय आए?