सब्ज़ बिल्ली सब्ज़ आँखें सब्ज़ सूरज की किरन जब नीम-ख़्वाबी की तरह उस आँख ऊपर झूलती है झूमती है सब्ज़ आँखें सब्ज़-रौशन रंग की बारीक-लहरें उर्ग़ुवानी क़ुर्मुज़ी थोड़ा बहुत सोने का झिलमिल-रंग आँखें ज़िंदगी बनती हैं धुँदली रौशनी में सब्ज़ भूरी आँखें खुलती हैं तो फ़ौरन क़ुमक़ुमे सी खिलखिलाती बे-महाबा रौशनी हर गोशे से खिंच कर सिमट आती है भूरी सब्ज़ चश्म बे-हिजाबी कौंदती है धूप की गर्मी नज़र बेबाक उर्यां फैलते पारे की सूरत शाह-राहों और घरों में मौजज़न है सब्ज़ आँखें सब्ज़ शफ़्फ़ाफ़ आबगीना बन गई हैं