सच्चाई की नुमूद By Nazm << अपनी ज़ात की चोरी दहशत-गर्द बनाते हो >> ज़िंदा लहू के अज़्म की ताज़ीम कर न कर उभरेगा इस लहू के तमव्वुज से इंक़लाब सच्चाई की नुमूद को तस्लीम कर न कर कच्चे घरों की कोख से फूटेगा इंक़लाब तू शब के ख़द-ओ-ख़ाल में तरमीम कर न कर Share on: