सड़क बे-धड़क हम-सफ़र है चली जा रही है कि बस मंज़िल-ए-शौक़ हद्द-ए-नज़र है कई हम-सफ़र रह गए रास्ते में मगर ये रवाँ है हमेशा शजर शहर नद्दी मुसाफ़िर हर इक से उसे प्यार सा है मिलन कि कई हसरतें अपने अंदर समेटे कड़े फ़ासलों की मसाफ़त लपेटे यूँही लेटे लेटे चली जा रही है सुझाती हुई हम-सफ़र को जहाँ भी तो इक रहगुज़र है सड़क बे-धड़क हम-सफ़र है