सुनते हैं कि नस्लों पहले चीन की बाग़ी शहज़ादी ने अपनी दुनिया तक जाने के पागल शौक़ में आँगन की दहलीज़ अलांगी और गलियाँ शह-राहें नापती इक फुलवारी तक जा पहुँची रस्मों के ठेके-दारों ने जुर्म-ए-तमन्ना की पादाश में हुक्म सुनाया अब दुनिया में आने वाली हर हवा को