सफ़ा मर्वा सफ़ा-ओ-मर्वा के दरमियाँ दौड़ती उमंगो तुम्हें ख़बर है तुम्हारे अज्दाद के नुक़ूश-ए-बरहना-पाई तुम्हारे क़दमों के नक़्श-गर हैं तुम अपने क़दमों की पैरवी में रवाँ-दवाँ हो ख़ुद अपना इरफ़ान ढूँडते हो हुजूम में चल के अपनी बक़ा का सामान ढूँडते हो दिलों के असनाम रेज़ा रेज़ा तुम अपने क़दमों पे चल रहे हो दिलों के अंदर छुपे बुतों को मिटा रहे हो दिलों के अंदर छुपे दरिंदों को संग-ए-सब्र-ओ-ग़िना से करते हो पाश पाश और चल रहे हो हिसार-ए-शब में रवाँ हो कब से तुम अपना ख़ुद कारवाँ हो कब से मगर शयातीं तुम्हारे अंदर जो बस रहे हैं वो कब मिटेंगे तुम्हारे नक़्श-ए-क़दम कब अपनी अना के बुत तोड़ कर हुजूम-ए-मुसाफ़िराँ के रफ़ीक़ होंगे तुम अपने अज्दाद ही के नक़्श-ए-क़दम पे चलते रहोगे और फिर ये भी जान लोगे कि ये तुम्हारे ही नक़्श-ए-पा है तुम्हारे आमाल की जज़ा हैं तुम्हारी तक़दीर का सिला हैं तुम्हारी सई की इंतिहा हैं