वो कौन थे सहाब थे किताब थे मिरे हर इक सवाल का जवाब थे कि ख़्वाब थे वो कौन थे सितारे थे कि आसमाँ से रौशनी लिए हुए ज़मीं पे आ गए थे मेरे वास्ते वो कौन थे वो हम-क़लम वो हम-ज़बाँ वो हम-यक़ीं वो हम-गुमाँ वो हम-ख़याल ओ हम-बयाँ वो यूँ मिले कि जैसे हाफ़िज़े से याद जैसे तिश्ना मिट्टियों से बारिशें कि जैसे शाम को परिंद घोंसलों से जा मिलें कि जैसे रेग-ज़ार को अमाँ मिले हयात की कि जैसे मेरी ज़ात को अज़ाँ मिली हो ज़ात की वो यूँ मिले तो ऐ ज़मीन-ओ-आसमाँ के नूर मेरे मुद्दआ' मैं ख़्वाब देखता हूँ ढूँढता भी हूँ बशारतें उन्हें भी ख़्वाब देखने नज़र मिले यक़ीन तराशने गुमाँ से भागने हुनर मिले सफ़र मिले वो ज़ुल्म हो कि ख़ौफ़ हो वो ज़ख़्म हो कि चोट हो अज़ाब या इताब हो इन्हें बचाए रख तू ऐ मिरे ख़ुदा मैं जब मिलूँ तो यूँ मिलूँ वो जब मिलें तो यूँ मिलें कि जैसे सुब्ह शाम से कोई ख़ुद अपने नाम से कि जैसे धूप छाँव से ग़रीब-ए-शहर गाँव से कि जैसे लब दुआओं से वो यूँ मिलें मैं यूँ मिलूँ मिरे ख़ुदा है ये दुआ यही दुआ