आज भी रात सोने से पहले मेरे बेटे ने मुझ से कहा मैं उसे कोई अच्छी कहानी सुनाऊँ तो मैं ने उसे एक दिलकश जज़ीरे में अच्छे गुज़रते दिनों की कहानी सुनाई जो मुझ से मिरे बाप ने ये कही और इस ने विरासत में इस दास्तान को सुना हम ने बचपन में सर-सब्ज़-ओ-शादाब नीले जज़ीरे में परियों फलों और फूलों चहकती हुई बुलबुलों की कहानी सुनी थी जज़ीरा समुंदर की आज़ाद लहरें जहाँ नाचती हैं जहाँ अमन ही अमन है चीन ही चीन है हर नया दिन बशारत की बारात बन कर उतरता है मेरा बेटा जो सोया हुआ है कहीं तितलियों के तआ'क़ुब में बेचैन है हम सभी आँख मूँदे हुए तितलियों के तुक्का कब बे बेचैन हैं कि शायद अँधेरे में लिपटे हुए सब्ज़ बाग़ों के क़िस्से ये नीला जज़ीरा किताबों में दानिश की हर लौह पर ग़ैर मफ़्हूम अल्फ़ाज़ हैं कई मनचले मनचलों के गिरोह इस जज़ीरे के लम्बे सफ़र पर गए और पलट कर न आए मेरा बेटा जो सोया हुआ तितलियों के तुक्का कब बे बेचैन है मैं उसे भी सफ़र पर गया और पलट कर न आता हुआ देखता हूँ हम ने सदियों से पाँव को हाथों को सीनों को बे-दर्द मेख़ों से छलनी किया और लहू की तरह सुर्ख़ लोहे से अपनी ज़बानों को दाग़ा मगर वो जज़ीरा पहाड़ों की जानिब सफ़र था कि चलते तो वो दूर ही दूर जाता ठहरते तो जैसे वो नज़दीक आता यूँही नस्ल दर नस्ल हम ने अँधेरे में लिपटे हुए इन जज़ीरों की बातें कहीं और उन झूट की झालरों हाशियों को उठाए रक्खा नस्ल-दर-नस्ल हम क़ाफ़िला क़ाफ़िला बैल कंधे बदलते हसीं झूट की ये सलीबें उठाते रहे मैं कि जामिद ज़ेहानत का क़ाइल नहीं हम ने अपने से पहलूँ के इल्म ओ फ़रासत की तशरीह ओ तावील में अपनी रग रग से सारी ज़ेहानत को ग़ारत किया हम ने अपने बुज़ुर्गों की ख़िफ़्फ़त मिटाने छुपाने की ख़ातिर लहू मोम्याई किया किसी ने कहा वो जज़ीरा समुंदर के इस पार है और हम नस्ल-दर-नस्ल डूबी हुई कश्तियाँ बन गए किसी ने कहा वो जज़ीरा उफ़ुक़ से परे आख़िरी फ़ासले के धोएँ में छुपा है और हम क़हर सहरा में बारात बरदार टूटा हुआ क़ाफ़िला बन गए मगर वो जज़ीरा अजब दलदलों का सफ़र है कि सौ कोस जाएँ तो जैसे फ़क़त दो क़दम ही चले हैं मगर वो जज़ीरा पहाड़ों की जानिब सफ़र है कि जाएँ तो वो दूर ही दूर जाए जो ठहरें तो जैसे वो नज़दीक आए